राम मोहन राय यह व्याख्यान टैगोर की चीन यात्रा की शताब्दी के अवसर पर २३ सितम्बर २०२४ को गाँधी शांति प्रतिष्ठान में हुए समारोह में दिया गया था। प्रिय मित्रों,
आज का यह समारोह एक ऐसे ऐतिहासिक दिन में है जब हम गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर की चीन यात्रा की शताब्दी मना रहे हैं और उसके साथ-साथ इस महात्मा गांधी के वैचारिक केंद्र 'गांधी शांति प्रतिष्ठान' में गुरुदेव की मानस पुत्री चमेली रामचंद्रन का गांधी ग्लोबल फैमिली की ओर से और तमाम गांधी फ्रेटर्निटी की ओर से अभिनंदन कर रहे हैं। नंदिता ने सही कहा कि यह अभिनन्दन उन्होंने स्वीकार किया गुरुदेव के तमाम प्रिय शिष्यों, पारिवारिक जन और उन तमाम लोगों की तरफ से जो शांति और भाईचारे और आपसी सद्भाव में यकीन करते हैं। जो यकीन करते हैं कि एक नई दुनिया संभव है जिसमें युद्ध नहीं, आपसी नफ़रत नहीं होगी, जिसमें हिंसा नहीं होगी। इसलिए मैं चमेली जी को आज के इस अवसर को बहुत बहुत बधाई देना चाहूंगा, उनका आभार व्यक्त करना चाहूंगा ये अभिनंदन ग्रहण करने के लिए और ये कहना चाहूंगा कि अभिनंदन तो गांधी ग्लोबल फैमिली का है, गांधी फ्रेटरनिटी का है जिसे आपने प्राप्त करके उन सब का अभिनंदन किया। दोस्तों, मेरी व्यावहारिक चेतना सत्तर के दशक में शुरू हुई थी, जब हमारे देश में एक नए परिवर्तन की हवा थी। हमारे देश को आज़ाद हुए लगभग 25 वर्ष होने को थे और साथ-साथ हमारे देश में एक नया वातावरण भी तैयार किया जा रहा था। जैसा कि हम जानते हैं भारत की आज़ादी की लड़ाई हम लोगों ने सिर्फ इसलिए नहीं लड़ी कि हम आज़ाद हो जाएंगे, हम भी एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में विकसित होंगे और फिर एक दिन ऐसा आएगा कि हम विश्व गुरु बनने का ख़्वाब सँजोएंगे। पर हमने तो इसलिए लड़ी थी, महात्मा गांधी के शब्दों में, भारत को आज़ादी इसलिए चाहिए ताकि वह दुनिया की सेवा कर सके। जब हमारे देश में आज़ादी की लहर आई और आज़ाद हम हुए तो, उसके 25 साल के बाद हमारे जैसे लोगों को, जिनका जन्म आज़ादी के काफी बाद हुआ था, उनमें व्यावहारिक चेतना जागृत हुई और वह व्यावहारिक चेतना का आगाज़ था बैंको का राष्ट्रीयकरण, राजाओं के भत्ते बंद हुए और 1971 में हमारे देश में नई आवाज़ उठी: गरीबी हटाओ। हमको स्वावलंबी बनना है, हमें गरीबी को ख़त्म करना है, हमने जो राजा रजवाड़ों का बोझ उठा रखा है हमें उसको दूर करना है और हमने ताकत देनी है उस हर गरीब के हाथ में हर उस व्यक्ति के हाथ में जो सबसे निचले स्तर पर है। ये वो दौर था जब हमारे जैसे लोगों में व्यवहारिक चेतना का आगाज़ हुआ। मैं ये नहीं कहता राजनीतिक चेतना का आगाज़ हुआ, व्यवहारिक चेतना का आगाज़ हुआ। ये वो समय था जब बांग्लादेश का उदय हुआ और वहां एक नई लहर चली और वहां भी उसी तरह की आवाज़ थी जैसे हमारे देश में। वहां अवामी लीग जो शेख़ मुजीब उर रहमान की पार्टी थी उसने बांग्लादेश कृषक श्रमिक आवामी पार्टी के नाम से एक नई पार्टी बनाई जिसमें वो तमाम लोग थे, जिसमें किसान थे, मजदूर थे और उसमें वो तमाम सपने थे जो उन सूखी आंखों में लोग देखते हैं। साथ साथ हमने ये भी देखा कि हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में जनतंत्र का उदय हुआ। ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो उस देश के प्रधानमंत्री बने और हमें ये भी याद है बेशक हमने लड़ाई लड़ी, बेशक नारे उछाले गए इसके बावजूद शिमला में समझोता हुआ जिसको इंदिरा-भुट्टो के नाम से नाम से जाना जाता है। मेरा यह फ़क्र है कि उस सरकार को बनाने में मेरे शहर के बुज़ुर्ग डॉक्टर मुबाशिर हसन का एक बहुत बड़ा हाथ था। पाकिस्तान में जनतांत्रिक सरकार बनी, श्रीलंका में भी सिरिमावो भंडारनायके के नेतृत्व में एक सरकार बनी, भारत में लोकतंत्र मज़बूत हुआ और हमारे देश के अंदर अनेक कार्यक्रम चले। ये वो दौर था जब हमने संविधान का 42वा संशोधन किया और हमने समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता जैसे शब्दों को हमारे देश के संविधान की भूमिका में रखा। हमने बीस सूत्री कार्यक्रम पेश किए जिसमे हमने स्पष्ट रूप से कहा था कि हम बँधवा मज़दूरों की मुक्ति करेंगे, हमने स्त्रियों, विद्यार्थियों और बच्चों की सशक्तिकरण की बात की थी। और इन तमाम के साथ साथ हम एक नया नज़ारा भी देख रहे थे और वो ये था की जब हमारे पूरे एशिया के अंदर इस तरह के हालात पनप रहे हैं उस समय दूसरी ओर अमेरिका की रहनुमाई में उनकी एजेंसी सी आई ए भी काम कर रही थी। हमने वो भी देखा कि एक के बाद एक 1975 के अंदर शेख मुजीबुर रहमान का क़त्ल किया गया उसके बाद ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो को फांसी दी गई उसके बाद सिरिमावो भंडारनायके की भी हत्या की गई और आखरी हालात में 1984 में जब हमारी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को क़त्ल किया गया। ये वो दौर भी था जब हम गुटनिर्पेक्ष आंदोलन के एक बहुत बड़े नेता के रूप में आगे बढ़ रहे थे। हमारी भूमिका वर्ल्ड पीस आंदोलन में थी, हमारी भूमिका थी पूरे दुनिया के अंदर। शांति का झंडा लिए हुए हमारे देश के रमेश चंद्र, ई एस रेड्डी जैसे लोग पूरे दुनिया में विश्व शांति के आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे। ये वो दौर था जिसने जहाँ सकारात्मक भावना पैदा की वहीं नकारात्मक भी। हमने उन साजिशों को भी देखा जो हमारे देश के साथ हुई। हम और चीन के रिश्ते कोई नए नहीं है, हज़ारों हज़ारों साल के हैं। ह्वेन त्सांग, फाह्यान जैसे अनेक यात्री आए। और जब माओ से-तुंग, जो चीन के पहले राष्ट्रपति थे, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ चाइना के अध्यक्ष थे उनको हमारे राजदूत अपने क्रेडेंटिअल्स देने गए तो माओ ने कहा जानते हो हमारे देश में क्या प्रसिद्ध है? उन्होंने कहा क्या प्रसिद्ध है? माओ ने कहा हमारे देश में प्रसिद्ध ये है कि जो सारे जीवन पर्यंत पुण्य कर्म करता है उसका अगला जीवन, अगला जन्म बुद्ध भूमि भारत में होगा। ये कौन बोल रहा है? ये कॉमरेड माओ से तुंग जो कम्युनिस्ट पार्टी के नेता हैं, जो किसी धर्म को नहीं मानते वो कह रहे हैं। ये है हमारी अध्यात्म गण भूमि। और ये वो दौर था जब पंडित जवाहरलाल नेहरू और चीन के प्रधानमंत्री चाउ एन लाई ने हमारे देश के अंदर हिंदी चीनी भाई भाई, भाई भाई के नारे लगाए। मुझे वो दिन याद हैं, मैं बहुत छोटा बच्चा था और मैंने अपने माता पिता से उन नारों की व्याख्या को सुना। मैंने पूरे देश के अंदर उन नारों को सुना है: हिंदी चीनी भाई भाई। 1962 का दौर आया जब हमारे में और चीन के अंदर एक युद्ध हुआ और दुनिया में ये पहली बार हुआ कि अंतरराष्ट्रीय आंदोलन में एकीकृत कम्युनिस्ट पार्टी का विभाजन, या चीन परस्त या रूसी परास्त, इन दो नामों से हुआ। मैं पार्टी के प्रोग्राम की तरफ नहीं जाना चाहता पर जरूर कहना चाहता हूँ कि ये वो दौर था। और ऐसी त्रासदी में हमने अपने प्रिय नेता भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को 27 मई 1964 को खो दिया। मैं आपके सामने ये बात इसलिए रखना चाहता हूं कि आम मानस क्या समझता है? आम मानस के भीतर भारत और चीन और एशिया को लेकर क्या विचार हैं इस बारे में मैं आपको जानकारी देना चाहता हूं। मेरा संपर्क निर्मला देशपांडे जी के साथ सन 1980 के आसपास हुआ। जैसा की आप जानते है निर्मला जी ने अपना पूरा जीवन सर्वोदय विचार को समर्पित किया। विनोबा जी के साथ लगभग 40 हज़ार किलोमीटर चलीं पर वो मानती थी कि मेरा जो सबसे लोकप्रिय काम है वो है भारत और पाकिस्तान के लोगों के बीच दोस्ती। निर्मला जी की तो स्थिति यह तक थी, वह कहती थी कि भारत और चीन एक दूसरे से जुदा नहीं हो सकते और इसलिए उन्होंने एक उपन्यास लिखा उसका नाम रखा चिंगलिंग। चिंगलिंग एक चीनी यात्री है जो विनोबा जी की यात्रा में पूरे भूदान के आंदोलन में जुड़ी। निर्मला जी कहती थी मेरा पूर्व जन्म तो शंघाई में हुआ था और कोई मुझे उंगली पकड़ कर ले जाए तो मैं शंघाई के सारे रास्ते बता दूँ क्यूंकि मुझे अपना पूर्व जन्म याद है। निर्मला जी की यह बातें कल्पना मान सकते है, हम कुछ और नाम भी दे सकते हैं, परंतु ये बात ज़रूर कह सकते हैं क़ी उनकी एक ऐसी अपेक्षा थी कि एशिया के देशों के अंदर एक दोस्ती की भावना बने और ये दोस्ती ही पूरी दुनिया के अंदर शांति का संदेश दे। उनके गुरु संत विनोबा भावे एक सूत्र देते: ए बी सी, अफ़ग़ानिस्तान, बर्मा और सीलोन। उनका कहना था अगर ये तीन एशियाई देश एक हो जाएं अगर उनका एक संघ बन जाए तो हम विश्व शांति के एक बहुत बड़े पैगम्बर साबित होंगे। और उनकी ये शिक्षा को, एसोसिएशन ऑफ़ पीपल्स ऑफ़ एशिया की स्थापना करके निर्मला जी ने उस काम को बहुत आगे बढ़ाया। निर्मला जी की सोच थी कि वह ग्राम स्वराज से लेकर विश्व परिवार तक, जिसे निर्मला जी ने, विनोबा जी ने और सुब्बाराव जी ने जय जगत का नाम दिया, उस परिदृश्य को देखकर रहेंगी। आज की स्थिति एक अलग रूप में है। आज पूरी दुनिया के अंदर अशांति का वातावरण है। रूस और यूक्रेन के अंदर काफी लंबे समय से लड़ाई चल रही है। वास्तव में ये लड़ाई तो, जैसा हम जानते है, अमेरिका और नाटो के जो समर्थन से लोग खड़े है उनकी लड़ाई है। और वो ही इस लड़ाई की आग में पेट्रोल डालने का काम कर रहे हैं। पर हम ये भी देख रहे हैं की आज यु एस और नाटो कमज़ोर हो रहे हैं। इसके विपरीत रूस और चीन दोनों एक साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं. ऐसे समय में हम समझते हैं अगर एशियाई देशों में जो एकता, एशियाई देशों में जो भाईचारा, एशियाई देशों में मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित होंगे वह ने केवल एक आध्यात्मिक रास्ता दिखाएंगे अपितु राजनीतिक रूप से कूटनीतिक रूप से एक मजबूत संबल साबित होंगे। मैं इस अवसर पर गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर के भाषण के तीन अंश सुनाना चाहूंगा जो उन्होंने अपनी यात्रा के दौरान चीन में कहे। “आज ऐसे बहुत से लोग हैं जो विश्वास नहीं करते। वे नहीं जानते कि एक महान भविष्य में विश्वास करना ही उस भविष्य का निर्माण करता है; विश्वास के बिना आप सही अवसरों को नहीं पहचान सकते। विवेकपूर्ण लोगों और अविश्वासियों ने मतभेद पैदा किये हैं, लेकिन यह बच्चा जो हम में शाश्वत है, जो इंसान सपने देखता है, वह सरल विश्वास वाला व्यक्ति, इन्होनें महान सभ्यताओं का निर्माण किया है। आप अपने इतिहास में देखेंगे, एक रचनात्मक प्रतिभा में विश्वास था जिसकी कोई सीमा नहीं थी। आधुनिक संशयवादी, जो सदैव आलोचनात्मक रहता है, कुछ भी उत्पन्न नहीं कर सकता - वह केवल नष्ट कर सकता है।” गुरुदेव ने कहा “आइए हम इस दृढ़ विश्वास के साथ खुश हों कि हम ऐसे युग में पैदा हुए हैं जब राष्ट्र एक साथ आ रहे हैं। यह खून खराबा और दुख हमेशा के लिए नहीं चल सकता, क्योंकि मनुष्य होने के नाते, हम कभी भी अपनी आत्मा को अशांति और प्रतिस्पर्धा में नहीं पा सकते हैं। ऐसे संकेत हैं कि नया युग आ गया है। आपने मुझसे अपने पास आने के लिए कहा है, यह उनमें से एक है।” अंत में उन्होंने कहा “वह समय आ गया है जब हम एक बार फिर उस महाद्वीप से होने पर गर्व महसूस करेंगे जो संकट के तूफानी बादलों के बीच से निकलने वाली रोशनी पैदा करता है और जीवन के मार्ग को रोशन करता है।” ये है गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगर का सपना ये थी उनकी भविष्यवाणी और ये थी उनकी चाह, एक मज़बूत एशिया का निर्माण। भारत और चीन जैसे देशों के बीच मज़बूती के रिश्ते। आबादी हमारी भी बड़ी है उनकी भी बड़ी है पर हम क्यों नहीं सीख सकते? उन्होने अपनी आबादी को पावर बनाया हम क्यों नहीं सीख सकते उन्होंने गरीबी निवारण की अनेक योजनाएं शुरू की हैं। हम एक दूसरे से सीखें हम एक दूसरे को समझें तो निश्चित रूप से एक नए एशिया का उदय होगा और एक नए एशिया के उदय का मतलब है एक नए विश्व का उदय और एक नई विश्व शांति की चिंगारी का उदय। राम मोहन राय गांधी ग्लोबल फैमिली के महासचिव हैं। वह लंबे समय से पानीपत में अनेक संघर्षों में सक्रिय रहे हैं। वह निर्मला देशपांडे संस्थान के संस्थापक हैं।
0 Comments
Leave a Reply. |
CategoriesArchives
January 2025
|